Ritibadh kavi aur unki rchnayen pdf

Ritibadh kavi aur unki rchnayen

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रीतिबद्ध काव्यधारा उन कवियों की है जिन्होंने राजाओं (उनकी पत्नी या प्रेमिकाओं) को शास्त्रीय ज्ञान देने के लिए लक्षण ग्रंथों की रचना की। ये कवि पहले संस्कृत से काव्य लक्षण या सिद्धांत का अनुवाद ब्रज भाषा में करते, उसके बाद उदाहरण के रूप में कविता लिखते थे।

Ritibadh kavi aur unki rchnayen

रामचंद्र

रचनाकार              प्रमुख रचनाएँ

No.-1. चिन्तामणि         मुक्तक काव्य: रस विलास, छन्द विचार, पिगल, श्रृंगार मंजरी,कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक, काव्य प्रकाश, कवित विचार

No.-2. प्रबंध काव्य: रामायण, रामाश्वमेघ, कृष्णचरित

No.-3. कुलपति मिश्र      रस रहस्य, संग्राम सार, युक्ति तरंगिणी, नख शिख, द्रोण पर्व

No.-4. कुमार मणि          रसिक रंजन, रसिक रसाल

No.-5. देव         भावविलास, भवानी विलास, काव्य रसायन, जाति विलास, देवमाया प्रपंच (नाटक), रस विलास, रस रत्नाकर, सुख सागर तरंग

No.-6. सोमनाथ              रस पीयूष निधि, श्रृंगार विलास, कृष्ण लीलावती, पंचाध्यायी, सुजान विलास, माधव विनोद

No.-7. भिखारीदास         रस सारांश, काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय, छंदार्णव पिंगल, शब्दनाम कोश, विष्णु पुराण भाषा, शतरंजशतिका

No.-8. रसिक गोविन्द    रसिक गोविन्दानन्दघन, पिंगल, रसिक गोविन्द, युगल रस माधुरी, समय प्रवन्ध, लछिमन चंद्रिका, अष्टदेश भाषा

No.-9. प्रताप साहि          व्यंग्यार्थ कौमुदी (1825 ई.), काव्य विलास (1809 ई.), जयसिह प्रकाश, श्रृंगार मंजरी, शृंगार शिरोमणि, अलंकार चिन्तामणि, काव्य विनोद, जुगल नखशिख

No.-10. अमीरदास         सभा मंडन (1827 ई.), वृत्त चन्द्रोदय (1820 ई.), व्रजविलास सतसई (1832 ई.), श्री कृष्ण साहित्य सिन्धु (1833 ई.), शेर सिंह प्रकाश (1240 ई.), फाग पचीसी, ग्रीष्म विलास, भागवत रलाकर, दूषण उल्लास, अमीर प्रकाश, वैद्य कल्पतरु, अश्व-संहिता प्रकाश

No.-11. ग्वाल  यमुना लहरी, भक्त भावन, रसरूप, रसिकानंद, रसरंग, कृष्ण जू को नखशिख, दूषण दर्पण, राधा माधव मिलन, राधाष्टक, कवि हृदय विनोद, विजय विनोद, कवि दर्पण, नेह निर्वाह, वंसी बीसा, कुब्जाष्टक, षड्ऋतु वर्णन, अलंकार भ्रम भंजन, दृग शतक, हम्मीर हठ

No.-12. तोष निधि         सुधा निधि, नख शिख, विनय शतक

रसलीन  रस प्रबोध (1741 ई.), अंग दर्पण (1737 ई.)

No.-1. पद्माकर भट्ट         हिम्मत बहादुर विरुदावली, पद्माभरण, जगत विनोद, प्रबोध पचासा, गंगालहरी, प्रताप सिंह विरुदावली, कलि पच्चीसी

No.-2. वेनी ‘प्रवीन’     श्रृंगार भूषण, नवरस तरंग (1817), नानाराव प्रकाश।

No.-3. सुखदेव मिश्र       वृत्तविचार, छंदविचार, फाजिल अलीप्रकाश, अध्यात्म प्रकाश, रसार्णव, रस रत्नाकर, श्रृंगार लता

No.-4. याकूब खाँ             रस भूषण (1812 ई.)

No.-5. उजियारे (दौलत राम)        रसचंद्रिका, जुगलरस प्रकाश

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No.-6. राम सिंह               जुगल विलास, रस शिरोमणि, अलंकार दर्पण, रस निवास

No.-7. चंद्रशेखर वाजपेयी             रसिक विनोद, नख शिख, वृन्दावन शतक, गुरु पंचाशिका, ताजक, माधवी वसंत, हरिमानस विलास, हम्मीर हठ (प्रबन्ध काव्य)

No.-8. मतिराम               फूलमंजरी, लक्षण श्रृंगार, साहित्यसार, रसराज, ललित ललाम, सतसई, अलंकार पंचाशिका, छंदसार संग्रह (वृत्ति कौमुदी)

No.-9. कृष्ण भट्ट देव ऋषि            श्रृंगार रसमाधुरी (1712 ई.), अलंकार कलानिधि

No.-10. कालिदास त्रिवेदी             वारवधूविनोद, राधामाधव बुध मिलन विनोद, कालिदास हजारा

No.-11. जसवंत सिंह     भाषा भूषण, अपरोक्ष सिद्धान्त, अनुभव प्रकाश, आनन्द विलास, सिद्धान्त बोध, सिद्धान्त सार

No.-12. भूषण  शिवराज भूषण (1673), शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास, भूषण हजारा

No.-13. गोप     रामालंकार, रामचंद्रभूषण, रमाचंद्रभरण

रसिक सुमित       अलंकार-चन्द्रोदय (1729 ई.)

No.-1. रघुनंदन वन्दीजन              रसिक मोहन (1739 ई.), काव्य कलाधर (1745 ई.), जगत मोहन (1750 ई.)

No.-2. रस रूप  तुलसीभूषण (1754 ई.)

No.-1. सेवादास               नखशिख, रसदर्पण, गीता माहात्म्य, अलबेले लाल जू को नख शिख, राधा सुधा शतक, रघुनाथ अलं2कार

No.-2. मंडन      रस रत्नावली, रस विलास, नखशिख, काव्यरत्न, नैन पचासा, जनक पच्चीसी

गिरिधरदास         भारती भूषण (1833 ई.)

No.-1. भूषण ‘मुरलीधर’            छन्दो हदय प्रकाश (1666 ई.), अलंकार प्रकाश (1648 ई.)

No.-2. राम सहाय            वृत्त तरंगिणी (1816 ई.), अलंकार प्रकाश (1648 ई.), वाणी भूषण

No.-3. माखन   श्रीनाग पिंगल अथवा छंदविलास (1702 ई.)

दशरथ   वृत्त विचार (1799 ई.)

No.-1. सूरति मिश्र          अलंकार माला, रसरत्न माला, रस सरस, रसग्राहक चंद्रिका, नखशिख, काव्य सिद्धान्त, रस रत्नाकर, भक्ति विनोद, श्रृंगार सागर

No.-2. उदयनाथ कवीन्द्र               रसचन्द्रोदय, विनोद चन्द्रिका, जोगलीला

प्रमुख रीतिबद्ध कवियों का संक्षिप्त जीवन-वृत्त निम्नांकित है-

कवि       जन्म-मृत्यु           जन्म स्थान         आश्रयदाता

No.-1. चिन्तामणि त्रिपाठी           1809-1685            तिकवाँपुर             1. शाहजी भोंसला, 2. शाहजहाँ, 3. दाराशिकोह

No.-2. भूषण     1613-1715            तिकवापुर             1. शिवा जी, 2. छत्रसाल

No.-3. मतिराम               1617       तिकवांपुर             1. जहाँगीर, 2. कुमायूँ नरेश ज्ञानचंद, 3. राव भाव सिंह हाड़ा, 4. स्वरूप सिंह बुन्देला

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No.-4. जसवंत सिंह        1626-1688            मारवाड  ये मारवाड़ प्रतापी नरेश थे

No.-5. सुखदेव मिश्र       –             रायबरेली               –

No.-6. तोष निधि            –             श्रृंगवेरपुर              1. भगवंत राय खाची 2. राव मर्दन सिंह 3. देवी सिंह 4. फाजिल अली शाह

No.-7. कुलपति मिश्र      –             आगरा    रामसिंह

No.-8. देव (देवदत्त)      1673-1767            इटावा     1. आजमशाह, 2. भवानीदत्त वैश्य, 3. कुशल सिंह, 4. सेठ भोगीलाल (मोतीलाल), 5. उद्योत सिह, 6. सुजान मणि, 7. अली अकबर खाँ

No.-9. सैयद गुलामनबी 1699-1750            बिलग्राम

No.-10. रसलीन              –             हरदोई

No.-11. भिखारीदास      –             ट्योंगा, प्रतापगढ़                हिन्दूपति सिंह

No.-12. पद्माकर              1753-1833            बाँदा       1. रघुराव अप्पा, 2. महाराज जैतपुर, 3. नोने अर्जुन सिंह 4. पारीक्षित, 5. अनूपगिरि (हिम्मत बहादुर), 6. रघुनाथ राव, 7. प्रताप सिंह, 8. जगत सिंह, 9. भीम सिंह, 10. दौलत राव सिंधिया

No.-13. रीतिबद्ध कवियों का संक्षिप्त जीवन-परिचय

केशवदास

No.-1. केशवदास का जन्म 1560 ई. और मृत्यु 1617 ई. में हुई थी। केशवदास ओरछा नरेश महाराजा रामसिंह के भाई इंद्रजीत सिंह के सभा में रहते थे।

No.-2.  केशव सर्वप्रथम शास्त्रीय पद्धति पर काव्य-रीति के विभिन्न अंगों का सम्यक विवेचन करने वाले आचार्य हैं। रीतिकाल में लक्षण ग्रंथ परम्परा के प्रवर्तक केशवदास हैं।

No.-3.  आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास को अलंकारवादी और उनके परवर्ती कवियों को रसवादी माना है।

No.-4.  केशवदास अलंकार को कविता के लिए महत्त्वपूर्ण मानते थे, उन्होंने लिखा भी है-

No.-5. “जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृत्ति

No.-6. भूषण बिंदु न विराजई कविता बनिता मित्त।।”

No.-7. रामचंद्र शुक्ल ने केशवदास को भक्तिकाल के अंतर्गत रखा है, लेकिन प्रवृति की दृष्टि वे रीतिकाल के अंतर्गत आते हैं। आचार्य शुक्ल ने केशवदास को कठिन काव्य का प्रेत कहा है क्योंकि उनकी कविता में अलंकार, चमत्कार एवं पांडित्य प्रदर्शन का भाव प्रमुख है।

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केशवदास की रचनाएँ

No.-1. रामचंद्रिका

No.-2. जनश्रुति के अनुसार केशव ने रामचंद्रिका की रचना बाल्मीकि के द्वारा स्वप्न में कहने पर किया था। रामचंद्रिका में ‘छंदों का वैविध्य’ या छंदों की भरमार’ मिलता है।

No.-3.  इन्होंने रामचंद्रिका की रचना तुलसीदास के रामचरितमानस ग्रंथ की प्रतिस्पर्धा में किया था। परंतु रामचंद्रिका का मूलाधार बाल्मीकि रामायण है।

No.-4. केशवदास की रामचंद्रिका महाकाव्य प्रसन्नराघव, हनुमन्नाटक, अनर्धराघव, कादम्बरी और नैषध ग्रंथों से प्रभावित है। केशवदास को रामचंद्रिका में सर्वाधिक सफलता संवाद योजना में मिली है।

No.-5. रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की “केशव की रचनाओं में सूर, तुलसी जैसी सरसता और तन्मयता चाहे न हो पर काव्यांगों का विस्तृत परिचय कराकर उन्होंने आगे के लिए मार्ग खोला।

रसिकप्रिया

No.-1. केशवदास ने रसिकप्रिया की रचना इंद्रजीत सिंह की एकनिष्ठ गणिका राय प्रबीन को शिक्षा देने के लिए की थी। यह ग्रंथ 16 प्रकाशों में विभक्त है जिसमें 13 प्रकाशों में श्रृंगार विवेचन और शेष 3 में अन्य रसों, वृतियों तथा काव्य दोषों का विवेचन मिलता है।

कविप्रिया

No.-1. इस ग्रंथ में केशवदास ने अलंकारों के निरूपण के साथ काव्य रीति, दोष आदि का भी विवेचन किया है।

केशवदास के संदर्भ में रामचंद्र शुक्ल के कथन-

No.-1.  केशव को कवि हृदय नहीं मिला था। उनमें वह सहृदयता और भावुकता भी न थी जो एक कवि में होनी चाहिए।

No.-2.  कवि कर्म में सफलता के लिए भाषा पर जैसा अधिकार होना चाहिए वैसा उन्हें प्राप्त न था।

No.-3.  केशव केवल उक्तिवैचित्र्य और शब्दक्रीडा के प्रेमी थे। जीवन के नाना गंभीर और मार्मिक पक्षों पर उनकी दृष्टि नहीं थी।

No.-4.  इसमें कोई संदेह नहीं कि काव्यरीति का सम्यक समावेश पहले-पहल आचार्य केशव ने ही किया। पर हिंदी में रीति ग्रंथों की अविरल और अखंडित परम्परा का प्रवाह केशव की ‘कविप्रिया’ के प्राय: पचास वर्ष पिछे चला और वह भी एक भिन्न आदर्श को लेकर, केशव के आदर्श को लेकर नहीं।

No.-5.  प्रबंध रचना योग्य न तो केशव में शक्ति थी और न अनुभूति

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नोट: आचार्य शुक्ल ने प्रबंध काव्य के लिए 3 बातें अनिवार्य माना है-

No.-1.  संबंध निर्वाह

No.-2.  कथा के गंभीर और मार्मिक स्थलों की पहचान

No.-3.  दृश्यों की स्थानगत् विशेषता

केशवदास की रचनाओं के टीकाकार

रचनाएँ  टीका      टीकाकार               भाषा

No.-1.  रसिकप्रिया            रसग्राहकचंद्रिका सुरति मिश्र           ब्रज

No.-2.  रसिकप्रिया            तिलक   हरिचरणदास       ब्रज

No.-3.  कविप्रिया              जोरावरप्रकाश      सुरति मिश्र           ब्रज

No.-4.  कविप्रिया               कविप्रिया भरण-तिलक     हरिचरणदास       ब्रज

चिन्तामणि त्रिपाठी

No.-1.  चिंतामणि का जन्म 1609 ई. में कानपुर में हुआ था। रामचन्द्र शुक्ल ने चिन्तामणि त्रिपाठी को रीतिकाव्य का प्रवर्तक माना है। चिन्तामणि त्रिपाठी सिद्धान्ततः रसवादी थे।

No.-2.  इनके के भाई मतिराम, भूषण और जटाशंकर त्रिपाठी थे। इन्होंने अपने ग्रंथों में कहीं-कहीं अपना नाम मणिमाला भी लिखा है। चिन्तामणि त्रिपाठी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ कविकुल कल्पतरु है।

चिन्तामणि की रचनाएँ:

मुक्तक काव्य:

No.-1.  रस विलास, छन्द विचार, पिगल, श्रृंगार मंजरी, कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक, काव्य प्रकाश, कवित विचार

प्रबंध काव्य:

No.-1.  रामायण, रामाश्वमेघ, कृष्णचरित

No.-2.  कविकुल कल्पतरु में काव्य के दशांगों का विवेचन हुआ है। इसमें इसमें 1133 पद्य हैं और यह 8 प्रकरणों में विभक्त है। ‘रसविलास’ रस विवेचन का ग्रंथ है।

No.-3.  वहीं ‘श्रृंगार मंजरी’ नायक-नायिका भेद [आंध्रप्रदेश कर संत अकबरशाह के श्रृंगार मंजरी (संस्कृत) का ब्रजभाषा में अनुवाद] इसी तरह ‘छंद विचार’ पिंगल प्राकृत पैंगल तथा भट्टकेदार के ‘वर्णरत्नाकर’ को आधार बनाकर कृष्ण का चरित-वर्णन किया गया है।

भिखारीदास

No.-1.  भिखारीदास का जन्म 1750 ई. के आस-पास टोंग्या में हुआ था। इनके आश्रयदाता हिन्दूपति (प्रतापगढ़ नरेश पृथ्वीसिंह के अनुज) थे। इनकी प्रमुक रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

भिखारीदास की रचनाएँ

No.-1.  भिखारीदास ने सर्वप्रथम हिन्दी काव्य-परम्परा, भाषा, छंद, तुक आदि पर विचार किया। भिखारीदास को रीतिकाल का अंतिम प्रसिद्ध आचार्य माना जाता है।

No.-2.  ‘काव्य निर्णय’ इनका प्रमुख ग्रंथ है जो 25 उल्लासों में विभक्त है। इसकी रचना हिंदूपति सिंह के नाम पर की गई है। रामचंद्र शुक्ल ने लिखा कि, ‘दास जी ऊँचे दर्जे के कवि थे।’

No.-3.   मिश्रबंधुओं ने ‘मिश्रबंधुविनोद’ में अलंकृतकाल (रीतिकाल) को दो भागों में विभाजित किया-

No.-4.  पूर्वालंकृतकाल: का सबसे बड़ा आचार्य चिंतामणि को माना है।

No.-5.   उत्तरालंकृतकाल: का सबसे बड़ा आचार्य भिखारी दास को माना है।

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भूषण

No.-1.  भूषण का जन्म 1631 ई. में तिकवांपुर में हुआ था और मृत्यु 1715 ई. में हुआ था। भूषण की समग्र रचनाएँ मुक्तक शैली में लिखी गई हैं। इनके ग्रन्थों का विवरण निम्नलिखित है-

ग्रंथ         वर्ष (ई.)  विशेषता                आश्रयदाता

No.-1.  शिवराज भूषण     1673       अलंकार ग्रंथ, 105 अलंकारों का निरूपण, 284 छंदों में वर्णित   छत्रपति शिवाजी

No.-2.  शिवा बावनी                          शिवा जी की वीरता का वर्णन            छत्रपति शिवाजी

No.-3.  छत्रसाल दशक                     छत्रसाल की वीरता का वर्णन            –

भूषण की रचनाएँ

No.-1.  भूषण के उपरोक्त 3 ग्रंथ ही उपलब्ध हैं परंतु कुछ विद्वान् 3 और ग्रंथों का उल्लेख करते हैं- भूषण उल्लास, दूषण उल्लास, भूषण हजारा।

No.-2.  भूषण छत्रपति शिवाजी और पन्ना के राजा छत्रसाल बुंदेला के आश्रय में रहे। भूषण ने इन्हीं दो नायकों को अपने वीरकाव्य का विषय बनाया। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा कि, ‘प्रेम और विलासिता के साहित्य का ही उन दीनों प्रधान्य था, उसमें वीर रस की रचना की यही उनकी विशेषता है।’

No.-3.   आचार्य रामचंद्र शुक्ल भी ने हिंदी साहित्य के इतिहास में लिखा है कि, “इन दी वीरों का जिस उत्साह के साथ सारी हिंदू जनता स्मरण करती है, उसी की व्यंजना भूषण ने की है।

No.-4.  वे हिंदू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।” भूषण वीर रस के कवि हैं। चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्रसाह ने इन्हें ‘कवि भूषण’ उपाधि दी थी।

No.-5.  रीतिकाल में श्रृंगार की धारा को वीर रस की तरफ मोड़ने का श्रेय भूषण को ही है। गणपतिचन्द्र गुप्त ने भूषण का मूल नाम ‘पतिराम’ या ‘मनीराम’ बताया है। वहीं विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इनका मूलनाम ‘घनश्याम’ बताया है।

No.-6.  महाराज छत्रसाल ने एक बार भूषण की पालकी को कन्धा लगाया था, जिस पर भूषण ने कहा था – “सिवा को बखान कि बखानौ छत्रसाल को।”भूषण के काव्य का एक प्रमुख दोष भाषागत् अव्यवस्था (शब्दों को तोड़-मरोड़ कर विकृत करना) और व्याकरणगत त्रुटियाँ हैं।

No.-7.  ‘शिवराज भूषण’ में इन्होंने दोहे में अलंकारों की परिभाषा दिया है और कवित्त एवं सवैया छंद में उदाहरण दिये हैं। इसी ग्रंथ में भूषण ने अपना जीवन परिचय भी दिया है। शिवराज भूषण में लक्षण और उदाहरण जयदेव के ‘चंद्रलोक’ तथा मतिराम के ‘ललित ललाम’ के आधार पर दिए गये हैं।

रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है-       

No.-1.  भूषण के वीर रस के उद्गार सारी जनता के हदय की सम्पति हुए।

No.-2.  शिवाजी और छत्रसाल की वीरता के वर्णनों को कोई कवियों की झूठी खुशामद नहीं कह सकता।

No.-3.  वे हिन्दू जाति के प्रतिनिधि कवि हैं।

 

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