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ये भारत और हिमालय में महत्वपूर्ण पर्वतीय दर्रे (Important Mountain Passes In India and The Himalayas in Hindi) पड़ोसी देशों से जुड़ने के लिए प्रवेश द्वार के रूप में काम करते हैं और उनमें से कुछ रणनीतिक महत्व रखते हैं।
प्राचीन काल में, हालांकि हिमालय के उबड़-खाबड़ इलाके ने विदेशियों के लिए भारत में प्रवेश करना मुश्किल बना दिया था, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में पहाड़ के दर्रे ने उनके लिए मार्ग प्रशस्त किया।
Passes Of Himalayas in Hindi part 2
नीति दर्रा
No.-1. नीति दर्रा उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित है।
No.-2. नीति दर्रा 5,389 मीटर ऊंचा है।
No.-3. नीति दर्रे से होकर मानसरोवर और कैलाश घाटी जाने का मुख्य मार्ग गुजरता है।
माना दर्रा
No.-1. माना दर्रा उत्तराखंड के कुमाऊँ श्रेणी में स्थित है।
No.-2. इस दर्रे से होकर मानसरोवर और कैलाश घाटी जाने का मुख्य मार्ग गुजरता है।
No.-3. यह दर्रा विशाल हिमालय में समुद्र तल से लगभग 5545 मीटर (18192 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
No.-4. माना दर्रा भारत के उत्तराखंड को तिब्बत से जोड़ता है।
No.-5. इसे दुनिया की सबसे ऊँची परिवहन योग्य सड़क भी माना जाता है।
No.-6. शीत ऋतु में यह लगभग 6 महीने बर्फ से ढका रहता है।
No.-7. माना दर्रा, नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के भीतर माना शहर से 24 कि.मी. और उत्तराखंड में प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक तीर्थ बद्रीनाथ से 27 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है
Passes Of Himalayas in Hindi
बनिहाल दर्रा
No.-1. बनिहाल पीर पंजाल पर्वतश्रेणी का एक दर्रा है, जो जम्मू कश्मीर राज्य में स्थित है।
No.-2. समुद्रतल से 2832 मीटर (9291 फीट) की ऊँचाई पर पीर पंजाल श्रेणी में स्थित यह दर्रा जम्मू को श्रीनगर से जोड़ता है।
No.-3. कश्मीरी भाषा में ‘बनिहाल’ का अर्थ है- ‘हिमावात’।
No.-4. यह दर्रा डोडा ज़िले में 2,832 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
No.-5. बनिहाल के मैदानों से कश्मीर घाटी तक पहुँचने का प्रमुख मार्ग है।
जम्मू-श्रीनगर सड़क जवाहर सुरंग से होते हुए इस दर्रे में प्रवेश करती है, जो सर्दियों में अक्सर बर्फ़ से बंद रहता है।
No.-6. पहले बनिहाल दर्रे में सामान कुलियों द्वारा पीठ पर ढोया जाता था, जो दिन भर में इसकी यात्रा पूरी करते थे।
No.-7. शीत ऋतु में बनिहाल दर्रा बर्फ से ढका रहता है।
No.-8. वर्ष पर्यन्त सड़क परिवहन की व्यवस्था करने के उद्देश्य से यहाँ ‘जवाहर सुरंग’ बनायी गई थी, जिसका उद्घाटन 1956 ई. में किया गया था, जिसके कारण अब इस दर्रे का बहुत उपयोग नहीं रह गया।
नाथुला दर्रा
No.-1. नाथुला दर्रा भारत के सिक्किम में डोगेक्या श्रेणी में स्थित है।
No.-2. यह दर्रा महान् हिमालय के अन्तर्गत पड़ता है। इस दर्रे के द्वारा दार्जिलिंग तथा चुम्बी घाटी से होकर तिब्बत जाने का मार्ग बनता है।
No.-3. वर्तमान समय में भारत एवं चीन के बीच व्यापार इसी मार्ग से होता है।
No.-4. भारत-चीन युद्ध के समय यह दर्रा काफ़ी चर्चित रहा था।
No.-5. नाथू ला पहाड़ का दर्रा है, जो चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ सिक्किम को जोड़ता है।
No.-6. समुद्र तल से 4310 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, यह दर्रा गंगटोक से करीब 54 कि.मी. पूर्व में स्थित है।
No.-7. गंगटोक में पूर्व अनुमति के साथ केवल भारतीयों को बुधवार, गुरुवार, शनिवार और रविवार को दर्रा घूमने दिया जाता है।
No.-8. यहाँ एक भारतीय युद्ध स्मारक भी मौजूद है।
No.-9. दर्रे में कई डूबे हुए क्षेत्र हैं। इसके साथ ही यहाँ के कई क्षेत्र भूस्खलन के प्रति संवेदनशील भी हैं।
बोलन दर्रा
Passes Of Himalayas
No.-1. बोलन पाकिस्तान में स्थित एक दर्रा है।
No.-2. बोलन दर्रा क्वेटा एवं पाकिस्तान को खक्खर से जोड़ता है।
No.-3. बोलन दर्रा अफ़गानिस्तान की सीमा से 120 कि.मी. की दूरी पर है।
No.-4. बोलन दर्रे को दक्षिण एशिया में व्यापारियों, आक्रमणकारियों और खानाबदोश जनजातियों के लिए एक प्रवेश द्वार के रूप में भी इस्तेमाल किया गया।
No.-5. ख़ैबर दर्रा उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा और अफ़ग़ानिस्तान के काबुलिस्तान मैदान के बीच हिन्दुकुश के सफ़ेद कोह पर्वत श्रृंखला में स्थित एक प्रख्यात दर्रा है।
No.-6. यह 1070 मीटर (3510 फ़ुट) की ऊँचाई पर सफ़ेद कोह श्रृंखला में एक प्राकृतिक कटाव है।
No.-7. इस दर्रे के ज़रिये भारतीय उपमहाद्वीप और मध्य एशिया के बीच आवागमन किया जा सकता है और इसने दोनों क्षेत्रों के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है।
No.-8. ख़ैबर दर्रा 33 मील (लगभग 52.8 कि.मी.) लम्बा है और इसका सबसे सँकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है।
No.-9. यह सँकरा मार्ग 600 से 1000 फुट की ऊँचाई पर बल खाता हुआ बृहदाकार पर्वतों के बीच खो सा जाता है।
No.-10. इस दर्रे के पूर्वी (भारतीय) छोर पर पेशावर तथा लंदी कोतल स्थित है, जहाँ से अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल को मार्ग जाता है।
पालघाट दर्रा
No.-1. पालघाट दर्रा पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी का एक बड़ा दर्रा है। यह प्रायद्वीपीय भारत का प्रमुख दर्रा हैं, जो केरल को तमिलनाडु तथा कर्नाटक से जोड़ता हैं।
No.-2. यह दर्रा दक्षिण भारत के मध्य केरल राज्य में स्थित है।
No.-3. नीलगिरि पहाड़ियों (उत्तर) व अन्नामलाई पहाड़ियों (दक्षिण) के बीच में स्थित यह दर्रा लगभग 32 कि.मी. चौड़ा है और केरल-तमिलनाडु सीमा पर स्थित है।
No.-4. केरल तथा तमिलनाडु दोनों राज्यों के बीच यह दर्रा यातायात के लिए प्रमुख मार्ग की भूमिका निभाता है।
No.-5. पालघाट दर्रा से होकर गुज़रने वाले राजमार्ग और रेलमार्ग केरल में पालक्काड् को तमिलनाडु में कोयंबत्तुर तथा पोल्लाची से जोड़ते हैं।
No.-6. दक्षिण भारत की जलवायु को प्रभावित करने में भी यह दर्रा विशेष भूमिका निभाता है।
No.-7. दक्षिणी-पश्चिम मानसून तथा बंगाल की खाड़ी से उठने वाले तूफ़ान इसी मार्ग से पर्वतीय क्षेत्र को पार करते हैं।
थालघाट
No.-1. थालघाट प्रायद्वीपीय भारत का प्रमुख दर्रा है।
No.-2. यह दर्रा पश्चिमी घाट (सह्याद्रि) में स्थित है।
No.-3. इस दर्रे से नासिक और भुसावल के रास्ते इन्दौर तथा भोपाल का जुड़ाव है।
No.-4. यहाँ से होकर मुम्बई-कोलकाता मार्ग गुजरता हैं ।
Passes Himalayas
बोमडिल दर्रा
No.-1. अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
No.-2. इस दर्रे से होकर तिब्बत जाने का मार्ग गुजरता है।
No.-3. भूटान के पूर्व में अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह दर्रा समुद्र तल से 2217 मीटर (7273 फुट) की ऊँचाई पर स्थित है।
No.-4. यह दर्रा अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है।
No.-9. प्रतिकूल मौसम और बर्फ़बारी के कारण यह शीत ऋतु में बंद रहता है।
बोमडिल दर्रा
No.-1. बोमडिल दर्रा अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
No.-2. इस दर्रे से होकर तिब्बत जाने का मार्ग गुजरता है।
No.-3. भूटान के पूर्व में अरुणाचल प्रदेश में स्थित यह दर्रा समुद्र तल से 2217 मीटर (7273 फुट) की ऊँचाई पर स्थित है।
No.-4. यह दर्रा अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ता है।
No.-5. प्रतिकूल मौसम और बर्फ़बारी के कारण यह शीत ऋतु में बंद रहता है।
पांगसौ दर्रा
No.-1. पांगसौ दर्रा अथवा ‘पन सौंग दर्रा’ अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण म्यांमार सीमा पर स्थित है।
No.-2. पांगसौ दर्रा समुद्री तल से 1,136 मीटर की ऊंचाई पर है।
No.-3. इस दर्रे से होकर डिब्रूगढ़ से म्यांमार के लिए मार्ग जाता हे।
No.-4. यह दर्रा म्यांमार से पश्चिम में असम के मैदानी इलाक़ों तक पहुँचने का सबसे सरल मार्ग है।
No.-5. इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि असम में 13वीं सदी में आकर बसने वाले अहोम लोगों ने इसी दर्रे से भारत में प्रवेश किया था।
No.-6. इस दर्रे का नाम म्यांमार के एक ग्राम ‘पंगसौ’ के नाम पर पड़ा है, जो दर्रे से दो कि.मी. पूर्व में बसा हुआ है।
No.-7. भारत को म्यांमार से जोड़ने वाला ‘लेडो मार्ग’ इसी दर्रे से निकलता है।