Nath sahity aur kavi  नाथ साहित्य के कवि और रचनाएँ

Nath sahity aur kavi  नाथ साहित्य के कवि और रचनाएँ

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नाथ साहित्य : नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक मत्स्येंद्रनाथ एवं गोरखनाथ माने गए हैं। इनका समय 10वीं से 13वीं शती माना गया है तथा हिंदी संतकाव्य पर इनका पर्याप्त प्रभाव देखा गया है।अंतिम सिद्ध और पहले नाथ मत्स्येंद्रनाथ माने जाते हैं। यह सिद्धों और नाथों की बीच की कड़ी माने जाते हैं। रामचंद्र शुक्ल ने अंतिम सिद्ध और पहला नाथ जालंधर नाथ को माना है। यह मत्स्येंद्र नाथ के गुरु माने जाते हैं।

Nath sahity aur kavi  नाथ साहित्य के कवि और रचनाएँ

सिद्धों एवं नाथों में प्रमुख अंतर-

No.-1.  सिद्ध निरीश्वरवादी थे, नाथ ईश्वरवादी।

No.-2.  सिद्ध नारी भोग में विश्वास करते थे, वहीं नाथपंथी उसके विरोधी थे।

No.-3.  गुरु महिमा, हठयोग एवं पिंड ब्रम्हांडवाद नाथ साहित्य का वैशिष्ट्य है। वहीं नाथ पंथियों के ईश्वरवाद का वैशिष्ट्य ‘निर्गुण की साधना’ है। नाथों ने निरीश्वरवादी शून्य को ईश्वरवादी शून्य के रूप में प्रतिष्ठित किया।

No.-4.  नाथ पंथ में ‘शिव’ ही ‘आदिनाथ’ के रूप में हैं/जाने जाते हैं। और दार्शनिकता भी सैद्वान्तिक रूप से शैवमत से प्रभावित है लेकिन व्यवहारिकता की दृष्टि से हठयोग के अधिक नजदीक है।

No.-5.  गुरु महिमा, हठयोग एवं पिंड ब्रम्हांडवाद नाथ साहित्य का वैशिष्ट्य है। वहीं नाथ पंथियों के ईश्वरवाद का वैशिष्ट्य ‘निर्गुण की साधना’ है। नाथों ने निरीश्वरवादी शून्य को ईश्वरवादी शून्य के रूप में प्रतिष्ठित किया।

No.-6.  नाथ पंथ में ‘शिव’ ही ‘आदिनाथ’ के रूप में हैं/जाने जाते हैं। और दार्शनिकता भी सैद्वान्तिक रूप से शैवमत से प्रभावित है लेकिन व्यवहारिकता की दृष्टि से हठयोग के अधिक नजदीक है।

अब प्रश्न उठता है कि हठयोग क्या है?

No.-1.  हठयोग देह शुद्धि का साधन है, प्राणायाम और देह शुद्धि के द्वारा साधक मन को एकाग्र कर समाधिस्थ होता है ताकि ‘कुंडलिनी को जाग्रति किया जा सके। नाथों का मत है की ‘महाकुंडलिनी’ में ही शक्ति का समाहार होता है।

No.-2.  हठयोगियों के ‘सिद्ध-सिद्धान्त-पद्धति’ ग्रंथ के अनुसार ‘ह’ का अर्थ है सूर्य तथा ‘ठ’ का अर्थ है चन्द्र। इन दोनों के योग को हठयोग कहते हैं।नाथ-पंथियों का हठयोग-साधना का विकास सिद्धों को वाममार्गी-भोग प्रधान योग-साधना की प्रतिक्रिया में हुआ।

षष्ठ् चक्र क्या है?

No.-1.  षष्ठ् चक्र का अर्थ है मूलाधार, अनाहत, सहस्रार चक्र (विशुद्ध), आज्ञा आदि।

षष्टांग योग क्या है?

No.-1.  षष्टांग योग का अर्थ ध्यान, आसन, समाधि, प्राणायाम आदि है। इसमें हठयोगी साधना द्वारा शरीर और मन को शुद्ध करके शून्य में समाधि लगाता है, इसके बाद ही ब्रम्हा का साक्षात्कार करता है।

नाथ साहित्य का विकास क्रम-

No.-1.  महायान- वज्रयान- सहजयान- नाथसम्प्रदाय

No.-2.  महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर के अनुसार गोरखनाथ की शिष्य परम्परा का क्रम-

No.-3.  आदिनाथ- मत्स्येंद्रनाथ- गोरखनाथ- गैंगीनाथ- निवृत्तिनाथ- ज्ञानेश्वर

गोरक्ष सिद्धान्त-संग्रह के अनुसार 9 नाथों की सूची-

  1. नागार्जुन 2. जड़भरत 3. हरिश्चन्द्र 4. सत्यनाथ 5. भीमनाथ 6. गोरखनाथ 7. चपर्टनाथ 8. जलंधर 9. मलयार्जुन

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(नोट- इनमें से नागार्जुन, गोरखनाथ, चपर्टनाथ तथा जलंधर सिद्धों की परम्परा में भी हैं। दूसरी बात नागार्जुन प्रसिद्ध रसायनी भी थे।)

राम कुमार वर्मा के अनुसार 9 नाथों की सूची-

  1. आदिनाथ 2. मत्स्येन्द्रनाथ 3. गोरखनाथ 4. गाहिणीनाथ 5. चपर्टनाथ 6. चौरंगीनाथ 7. ज्वालेंद्रनाथ 8. भृर्तनाथ 9. गोपीचंद नाथ

नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि-

No.-1.  गोरखनाथ, चौरंगीनाथ, गोपीचंद, चुणकरनाथ, भरथरी जालंधरी पाव

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नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि और रचनाएँ-

मत्स्येन्द्र नाथ-

No.-1.  मत्स्येन्द्र नाथ का वास्तविक नाम ‘विष्णु शर्मा’ है। मीननाथ, मच्छिन्द्रपा, मच्छरन्दर नाथ, भैरवानंद, अवलोकितेश्वर आदि नाम से भी जाने जाते हैं।नाथ परम्परा के अनुसार इनके गुरु का नाम जालंधरनाथ है।

No.-2.  ज्योतिरेश्वर ठाकुर के ‘वर्णरत्नाकर’ की सूची में प्रथम नाम मत्स्येन्द्रनाथ का है वहीं संत ज्ञानेश्वर की सूची में ‘आदिनाथ’ के बाद दूसरा नाम इन्हीं का है।

No.-3.  ध्यान देने योग्य बात यह है की आदिनाथ को परवर्ती संतों ने ‘शिव’ माना है। इस प्रकार ‘मत्स्येन्द्रनाथ’ ही नाथ सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य सिद्ध होते हैं।10वीं शदी के कश्मीरी आचार्य अभिनव गुप्त ने ‘तन्त्रालोक’ में मत्स्येन्द्र नाथ की बंदना की है।

मत्स्येन्द्रनाथ की प्रमुख रचनाएँ-

  1. A) ज्ञानकारिका, B) कुलानंद, C) कौलज्ञान निर्णय, D) अकुलवीरतंत्रहजारी प्रसाद

No.-1.  द्विवेदी और पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने मत्स्येन्द्रनाथ के कुछ पदों का संग्रह क्रमशः ‘नाथ-सिद्धों की बनियों’ तथा ‘योग प्रवाह’ में किया है।

No.-2.  मत्स्येन्द्रनाथ की रचनाओं का वर्ण विषय ‘शैव परम्परा’ है।

No.-3.  मत्स्येन्द्रनाथ ने अपनी रचनाओं में सिद्धों के आचार विचार, शून्य, निरंजन तथा कौलज्ञान के बारे में देशी और संस्कृत मिश्रित भाषा में किया है।

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गोरख नाथ-

No.-1.  गोरखनाथ के गुरु का नाम मत्स्येन्द्रनाथ था। गोरखनाथ का का सम्बन्ध मूलतः गोरखपुर से था परन्तुं इनके मत का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार पंजाब और राजस्थान में हुआ।

No.-2.  इन्होने सर्वाधिक प्रचार-प्रसार यहीं किया भी था। गोरखनाथ नें ही हिंदी साहित्य में सर्वप्रथम शिव भक्त परम्परा की शुरुआत किया। नाथ साहित्य के आरंभकर्त्ता इन्ही को माना जाता है।

No.-3.  इन्होने ही हिंदी साहित्य में सर्वप्रथम षष्ट्चक्रों वाला योग-मार्ग चलाया। गोरखनाथ नें नारी से दूर रहने का उपदेश अपने शिष्यों को दिया।

No.-4.  कबीर के यहाँ नारी विरोध इसी का प्रभाव है। गोरखनाथ नें ‘पंतजलि’ के योग, उच्च लक्ष्य तथा ईश्वर की प्राप्ति का सहारा लेकर ‘हठयोग’ का प्रवर्तन किया। मिश्र बंधुओं ने गोरखनाथ को ‘हिंदी गद्य’ का प्रथम लेखक माना है।

No.-5.  हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि- “शंकराचार्य के बाद इतना प्रभावशाली और इतना महिमान्वित महापुरुष भारत वर्ष में दूसरा नहीं हुआ। भारतवर्ष के कोने-कोने में उनके अनुयायी आज भी पाए जाते हैं।

No.-6.  भक्ति आंदोलन के पूर्व सबसे अधिक शक्तिशाली धार्मिक आंदोलन गोरखनाथ का भक्तिमार्ग ही था। गोरखनाथ अपने युग के सबसे बड़े नेता हैं।”

No.-7.  हजारी प्रसाद द्विवेदी- “इनकी सबसे बड़ी कमजोरी इनका रूखापन एवं गृहस्थ के प्रति अनादर भाव है”

No.-8.  तुलसीदास- “गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग।”

विभिन्न विद्वानों के अनुसार गोरखनाथ का समय-

विद्वान समय

No.-1.  राहुल सांकृत्यायन                845 ई.

No.-2.  हजारी प्रसाद द्विवेदी          9वीं शताब्दी

No.-3.  पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल      11वीं शताब्दी

No.-4.  रामचन्द्र शुक्ल     13वीं शताब्दी

No.-5.  रामकुमार वर्मा      13वीं शताब्दी

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गोरखनाथ का समय

गोरखनाथ की प्रमाणिक रचनाएँ-

No.-1.  प्रसाद द्विवेदी ने गोरखनाथ के 28 ग्रन्थों का उल्लेख किया है। पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल नें गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन ‘गोरखबानी’ नाम से किया है।

No.-2.  जिसकी भाषा खड़ी बोली मिश्रित राजस्थानी है। (रामचंद्र शुक्ल ने नाथपंथियों की भाषा को सधुक्कड़ी भाषा कहा है। जिसका ढ़ाँचा कुछ खड़ी बोली लिए राजस्थानी था।)

No.-3.  पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ने ‘गोरखबानी’ में गोरखनाथ की 40 रचनाओं की सूची दिया है परंतु उनमें 14 ग्रंथो को ही प्रमाणिक माना है। जिसकी सूची नीचे दी जा रही है-

  1. A) सबदी, B) पद, C) सिष्या दरसन, D) प्राणसंकली, E) नरवैबोध, F) अभैमात्रा जोग, G) आसम-बोध, H) पन्द्रह तिथि, I) सप्तवार, J) मछीन्द्र गोरखबोध, K) रोमावली,  L) ग्यानतिलक, M) ग्यानचौंतीसा, N) पंचमात्रा

No.-4.  गोरखनाथ की रचनाओं में गुरुमहिमा, शून्य समाधि, प्राण साधना, इंद्रिय निग्रह, कुंडलिनी जागरण एवं वैराग्य का वर्णन है।

गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित 12 पंथ-

  1. सतनाथ 2. रामनाथ 3. धरमनाथ 4. लक्ष्मण नाथ 5. दरियानाथ 6.गंगानाथ 7. बैराग 8. रावल या नगनाथ 9. जालन्धरिया 10. आई पंथ 11. कपिलानी 12. भजनाथ

जलंधरनाथ

No.-1.  जलंधरनाथ का अन्य नाम ‘बालनाथ’ भी है।जलंधरनाथ की प्रमुख रचनाएँ-

  1. A) विमुक्तमंजरी गीत, B) हुँकारचित बिंदुभावना क्रम

चौरंगीनाथ

No.-1.  चौरंगीनाथ के गुरु गोरखनाथ थे।इनका प्रमुख ग्रंथ- ‘प्राणसंकली’ है।इनका अन्य नाम ‘पूरनभगत’ भी था।

चर्पटनाथ-

No.-1.  इनका वास्तविक नाम चरकानंद था।चर्पटनाथ के भी गुरु गोरखनाथ हैं।

 

 

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