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हिंदी महाकाव्य सृजन की परंपरा में महाकाव्य के 3 तत्व कथावस्तु, नायक तथा रस मान्य हैं। कथावस्तु के 3 अंग विस्तार, विशालता व छंद वैविध्य, नायक के 3 अंग गुण धीरोदात्तता, शालीनता, प्रासंगिकता तथा रस के 3 गुण भाषा-शैली, अलंकार तथा भावानुभाव हैं।समय, रूचि तथा क्रियाशीलता के अभाव के बाद भी हिंदी साहित्य में महाकाव्य लेखन की परम्परा गति तथा विस्तार पा रही है।
Hindi ke prmukh mahakavya
हिंदी के प्रमुख महाकाव्य
No.-1. कवि महाकाव्य वर्ष सर्ग
No.-2. चंदबरदाई पृथ्वीराज रासो 1400 वि. 69 समय
No.-3. मलिक मुहम्मद जायसी पद्मावत 1540 ई. 57 खंड
No.-4. तुलसीदास रामचरितमानस 1633 ई. 7 काण्ड
No.-5. आचार्य केशवदास रामचंद्रिका 1601 ई. 39 प्रकास
No.-6. मैथिलीशरण गुप्त साकेत 1988 ई. 12 सर्ग
No.-7. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ प्रियप्रवास 1913 ई. 17 सर्ग
No.-8. द्वारका प्रसाद मिश्र कृष्णायन 1942 ई. –
No.-9. जयशंकर प्रसाद कामायनी 1936 ई. 15 सर्ग
No.-10. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ उर्वशी 1961 ई. –
No.-11. रामकुमार वर्मा एकलव्य – –
No.-12. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ उर्मिला – –
No.-13. हिंदी के प्रमुख महाकाव्य
हिंदी के महाकाव्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
No.-1. चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो को हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
No.-2. अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ कृत खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
No.-3. पृथ्वीराज रासो को चंद के पुत्र जल्हण द्वारा पूर्ण किया गया है।
No.-4. ‘पृथ्वीराजरासो’ वीर रस का हिंदी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है।
No.-5. जायसी कृत पद्मावत सूफी परम्परा का प्रसिद्ध महाकाव्य है। अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की रचना दोहा और चौपाई छन्द में है।
No.-6. पद्मावत में दोहों की संख्या 653 है।
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No.-7. तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में वि. सं. 1631 (1574 ई.) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। उन्होंने रामचरितमानस को 2 वर्ष 7 माह 26 दिन में पूरा किया। इसकी भाषा अवधी है।
No.-8. रामचरित मानस में 7 काण्ड हैं- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड। जिसमें बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं।
No.-9. मानस में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है।
No.-10. रामचंद्रिका में कुल 1717 छंद हैं।
No.-11. केशव को रामचंद्रिका में संवाद-योजना, अलंका-योजना एवं छंद-योजना में अधिक सफलता मिली है। इसकी भाषा संस्कृत प्रधान ब्रजभाषा है।
No.-12. साकेत महाकाव्य के लिए मैथिलीशरण गुप्त को 1932 ई. में मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
No.-13. साकेत महाकाव्य रामकथा पर आधारित है, परंतु कथा के केन्द्र में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला है।
No.-14. प्रियप्रवास एक विरहकाव्य है। यह महाकाव्य कृष्ण काव्य की परंपरा में होते हुए भी, उससे भिन्न है क्योंकि यहाँ कृष्ण कोई ईश्वर न होकर एक महापुरुष के रूप में चित्रित हुए हैं।
No.-15. द्वारका प्रसाद मिश्र ने ‘कृष्णायन’ महाकाव्य की रचना 1942 में जेल में रहते हुए की थी।
No.-16. ‘कृष्णायन’ महाकाव्य में कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा कही गई है।
No.-17. कामायनी महाकाव्य की रचना जयशंकर प्रसाद ने 15 सर्गों में की है, जो निम्न हैं- चिन्ता, आशा, श्रद्धा, काम, वासना, लज्जा, कर्म, ईर्ष्या, इडा (तर्क, बुद्धि), स्वप्न, संघर्ष, निर्वेद (त्याग), दर्शन, रहस्य, आनन्द
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इन सर्गों को याद करने का सूत्र-
- चिंता की आशा से श्रद्धा ने काम वासना को लज्जित किया
- कर्म की ईर्ष्या से इड़ा ने स्वप्न में संघर्ष किया
- निदरआ (निद्रा)
No.-18. कामायनी के प्रमुख पात्र मनु, श्रद्धा, इडा, किलात-आकुलि, श्वेत वृषभ आदि क्रमशः मन, बुद्धि, मानव, आसुरी भाव, धर्म के प्रतीक हैं।
No.-19. उर्वशी महाकाव्य में दिनकर ने उर्वशी और पुरुरवा के प्राचीन आख्यान को एक नये अर्थ संदर्भों से जोड़ा है।
No.-20. ‘उर्वशी’ राष्ट्रवाद और वीर रस प्रधान रचना है। यह प्रेम और सौन्दर्य का काव्य है।
No.-21. उर्वशी महाकाव्य के लिए दिनकर को 1972 ई. में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।