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द्विवेदी मंडल के बाहर (स्वच्छंदता की धारा) के कवियों में श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा ‘शंकर’, बालमुकुंद गुप्त, लाला भगवानदीन, राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’, सैयद अमीर अली ‘मीर’, कामता प्रसाद गुरू, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ रूप नारायण पांडेय, लोचन प्रसाद पांडेय, राम नरेश त्रिपाठी, ठाकुर गोपाल शरण सिंह, मुकुटधर पाण्डेय आदि प्रमुख …
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भारत-भारती:
No.-1.गुप्त जी के ‘भारत-भारती’ का प्रकाशन 1912 ई. में हुआ था। गुप्त जी को ‘भारत-भारती’ रचना की मूल प्रेरणा ‘मुसद्दसे हाली’ तथा ब्रजमोहन दत्तात्रेय कैफी कृत ‘भारत दर्पण’ पुस्तक से प्राप्त हुई थी।
No.-2. गुप्त जी की ख्याति का मूलाधार ‘भारत-भारती’ ही है। इसमें भारत के अतीत का गौरव गान है। ‘भारत भारती’ ने हिन्दी भाषियों में जाति और देश के प्रति गर्व की भावनाएं जगाई, |
No.-3.इस ग्रंथ के प्रकाशन के बाद से ही गुप्त जी ‘राष्ट्रकवि’ के रूप में विख्यात हुए। इन्हें ‘भारत भारती’ लिखने पर महात्मा गाँधी ने राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी।
No.-4.गुप्त जी की राष्ट्रीय चेतना इस ग्रंथ में मुखरित हुई है। इसीलिए अंग्रेजी सरकार ने इस ग्रंथ को जब्त कर लिया था।
साकेत:
No.-1.साकेत रामकथा पर आधारित एक महाकाव्य है। तुलसी कृत ‘राम चरित मानस’ के पश्चात हिन्दी में राम काव्य का दूसरा प्रसिद्ध ग्रंथ मैथली शरण गुप्त का ‘साकेत’ है। इसका समारंभ 1914 में होता है, तथा 1931 ई. में पूर्ण हुआ।
No.-2. इसमें कुल बारह सर्ग हैं। गुप्त जी को साकेत रचना की मूल प्रेरणा, महावीर प्रसाद द्विवेदी के एक लेख ‘कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता’ से मिली, जो जुलाई 1908 ई. में सरस्वती पत्रिका में ‘भुजंग भूषण भट्टाचार्य’ छद्म नाम से छपा था।
No.-3. गुप्त जी ने उर्मिला विषयक जैसे उपेक्षित पात्र को नौवें सर्ग में, उसके विरह का विशद वर्णन किया है। आठवें सर्ग में कैकेयी के पश्चाताप को संवेदनशील तरीके से अभिव्यक्त किया है। ‘साकेत’ शब्द मूलतः पालि भाषा का शब्द है जिसका अर्थ अयोध्या है। इसमें 12 सर्ग है। इसे डॉ. नगेन्द्र ने ‘जनवादी काव्य’ कहा है।
यशोधरा:
No.-1.यह काव्य ग्रंथ गौतम बुद्ध के गृह त्याग की घटना को आधार बनाकर लिखा गया है। इसमें यशोधरा की वेदना मुखर रूप में हमारे सामने आती है। गुप्त जी की बहुउधृत पंक्ति इसी ग्रंथ से है-
No.-2. ‘अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।आंचल में है दूध और आँखों में पानी।।’
No.-3.गुप्त जी ने 3 नाटक भी लिखे हैं, जिनके नाम हैं-1. तिलोत्तमा, 2. चंद्रहास, 3. अनघ
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’:
No.-1. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ (1865-1947 ई.) को डॉ. गणपतिचन्द्र गुप्त ने आधुनिक काल का सूरदास कहा है। हरिऔध को ‘कवि सम्राट’ भी कहा जाता है।
No.-2. हरिऔध ने तीन प्रबन्ध काव्य लिखे जो निम्न हैं-
No.-3. प्रबन्धकाव्य वर्ष ई. सर्ग विषय
No.-4.प्रिय प्रवास 1914 17 कृष्ण के बचपन से लेकर मथुरा प्रस्थान तक का वर्णन
No.-5.पारिजात 1937 15 आध्यात्मिक एवं धार्मिक विषयों का वर्णन
No.-6.वैदेही वनवास 1941 18 इसमें राम के द्वारा सीता के निर्वासन की कथा है।
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हरिऔध के प्रबन्ध काव्य
प्रिय प्रवास:
No.-1. ‘प्रिय प्रवास’ को खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। इस ग्रंथ का सर्वप्रथम नाम ‘ब्रजांगना विलाप’ था। यह काव्य संस्कृत के वर्णवृत्तों पर आधारित है।
No.-2. ‘प्रिय प्रवास’ में कुल 17 सर्ग हैं, जिसमें राधा एवं कृष्ण की कथा वर्णित है। ‘प्रिय प्रवास’ पर इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक प्रदान किया गया था।
No.-3.अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा ब्रजभाषा में रचित ‘रसकलश’ (1931 ई.) एक रीति ग्रन्थ है। हरिऔध कृत ‘चुभते चौपदे, ‘चोखे चौपदे’ और ‘बोलचाल’ मुहावरेदार भाषा में लिखा गया है।
श्रीधर पाठक:
No.-1.श्रीधर पाठक (1859-1928 ई.) खड़ीबोली के प्रथम स्वच्छंदतावादी कवि हैं। पाठक जी के कविताओं का विषय देशप्रेम, समाज सुधार और प्रकृति चित्रण है। इन्होंने ब्रजभाषा में मौलिक काव्य ‘कश्मीर सुषमा’ की रचना 1904 ई. में किया।
श्रीधर पाठक द्वारा अनूदित काव्य ग्रंथ निम्नांकित है-
No.-1.अनूदित रचना वर्ष (ई.) मूल रचना मूल रचनाकार अनूदित भाषा
No.-2.गडरिये और दार्शनिक शेफर्ड एण्ड फिलाशफर Christina Berglund Germany
No.-3.एकांतवासी योगी 1886 हरमिट गोल्डस्मिथ खड़ी बोली
No.-4.उजड़ग्राम 1889 डेजर्टेड विलेज गोल्डस्मिथ ब्रजभाषा
No.-5.श्रांत पथिक 1902 ट्रैवलर गोल्डस्मिथ खड़ी बोली
No.-6.ऋतुसंहार ऋतुसंहार कालिदास ब्रजभाषा
श्रीधर पाठक द्वारा अनूदित काव्य ग्रंथ
No.-1.श्रीधर पाठक ने ‘एकांतवासी योगी’ की रचना लावनी या ख्याल शैली में की है तथा ‘श्रांत पथिक’ की रचना रोला छंद में की है।
No.-2.पाठक जी द्वारा खड़ी बोली में रचित प्रथम कविता ‘गुनवंत हेमंत’ है तथा खडी बोली की प्रथम पुस्तक ‘एकांतवासी योगी’ है। भारतोत्थान, भारत प्रशंसा, जार्ज वंदना, बाल विधवा आदि श्रीधर पाठक की कविताएँ हैं।
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महावीर प्रसाद द्विवेदी:
No.-1.महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864-1938 ई.) का जन्म रायबरेली के दौलतपुर गाँव में हुआ था।आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है, ‘हम पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी को पद्य रचना की एक प्रणाली के प्रवर्तक के रूप में पाते हैं।’
No.-2.द्विवेदी जी ने गद्य और पद्य दोनों के लिए खड़ी बोली में सामान्य बोलचाल की भाषा को प्राथमिकता देने की वकालत की। द्विवेदी जी के अनूदित और मौलिक लगभग 80 ग्रन्थ हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित अनूदित काव्य निम्न हैं-
अनुवाद आधार ग्रंथ
No.-1.विनय शतक भर्तृहरि भर्तृहरि के वैराग्यशतक का दोहों में अनुवाद
No.-2.विहार-वाटिका जयदेव के गीतगोविन्द का संक्षिप्त अनुवाद
No.-3.स्नेह माला भर्तृहरि के श्रृंगार शतक का दोहों में अनुवाद
No.-4.गंगा लहरी पण्डित राज जगन्नाथ की गंगा लहरी का सवैया में अनुवाद
No.-5.ऋतु तरंगिणी कालिदास के ऋतुसंहार का छायानुवाद
महावीर प्रसाद के अनूदित ग्रंथ
No.-1.महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रसिद्ध कविता ‘सरगौ नरक ठेकाना नाहिं’ है।महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है, ‘कविता का विषय मनोरंजन एवं उपदेशजनक होना चाहिए।
No.-2. यमुना के किनारे केलि कौतूहल का अद्भुत वर्णन बहुत हो चुका। न परकीयाओं पर प्रबन्ध लिखने की अब कोई आवश्यकता है और न स्वकीयाओं के ‘गाटागात’ की पहेली बुझाने की।
No.-3. चींटी से लेकर हाथीपर्यन्त, भिक्षुक से लेकर राजापर्यन्त मनुष्य, बिन्दु से लेकर समुद्र पर्यन्त जल, अनन्त आकाश, अनन्त पृथ्वी, अनन्त पर्वत-सभी पर कविता हो सकती है।’
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मुकुटधर पाण्डेय:
No.-1.मुकुटधर पाण्डेय को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद का प्रवर्तक स्वीकार किया है। मुकुटधर पाण्डेय जी लोचन प्रसाद पाण्डेय के अनुज थे। इन दोनों को पाण्डे बन्धु भी कहा जाता है।
No.-2. मैथिलीशरण गुप्त और मुकुटधर पाण्डेय द्विवेदी युग के प्रसिद्ध प्रगीत मुक्तकार माने जाते हैं। इनकी कविताओं का मुख्य विषय रहस्य भावना, प्रेम भावना एवं प्रकृति चित्रण है।
रामनरेश त्रिपाठी:
No.-1.रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावाद के दूसरे प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की एक संकल्पना विकसित की। देशभक्ति, प्रकृति चित्रण एवं नीति निरूपण इनकी रचनाओं में प्रमुखता से विद्यमान है।
No.-2.उनकी राय में राष्ट्रीयता के तीन खतरे हैं-विदेशी शासन (पराधीनता), एक तंत्रीय शासन (तानाशाही शासन) और विदेशी आक्रमण।
No.-3. इन्हीं तीन विषयों को लेकर त्रिपाठीजी ने काव्य त्रयी- ‘मिलन’, ‘पथिक’ व ‘स्वप्न’ की रचना किया, ये तीनों काल्पनिक खण्डकाव्य हैं। रामनरेश त्रिपाठी कृत ‘मानसी’ इनकी फुटकर कविताओं का संग्रह है।
No.-4. इन्होंने ‘कविता कौमुदी’ शीर्षक से आठ भागों में ग्राम-गीतों, उर्द, बांग्ला एवं संस्कृत की कविताओं का संकलन एवं सम्पादन किया है।
गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’:
No.-1.गयाप्रसाद शुक्ल श्रृंगारिक कविताएँ ‘सनेही’ उपनाम से तथा राष्ट्रीय भावनाओं की कविताएँ ‘त्रिशूल’ उपनाम से लिखते थे।
No.-2. ‘सनेही’ जी खड़ी बोली में कवित्त और सवैया छंदों का प्रयोग करने में प्रवीण थे। इन्होंने ‘सुकवि’ नामक पत्रिका का संपादन भी किया।
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कामता प्रसाद गुरू:
No.-1.कामता प्रसाद गुरु के प्रसिद्धि का मूलाधार उनका ‘हिन्दी व्याकरण’ है। इन्हें भाषा का पाणिनी भी कहा जाता है। कामता प्रसाद गुरु का ‘भौमासुर-वध’ और ‘विनय पचासा’ ब्रजभाषा में है तथा ‘पद्य पुष्पावली’ खड़ी बोली में है।
नाथूराम शर्मा:
No.-1.द्विवेदी युग में नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ को ‘कविता-कामिनी कांत’, ‘भारतेंदु-प्रज्ञेन्दु’, ‘साहित्य सुधाकर’ आदि उपाधियों से विभूषित किया गया।
No.-2. नाथूराम शर्मा समस्यापूर्ति और अतिशयोक्तिपूर्ण कविता करने में प्रवीण थे। नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ कृत ‘गर्भरण्डारहस्य’ एक प्रबन्ध काव्य है जिसमें विधवाओं की बुरी स्थिति और देव मन्दिरों के अनाचार का वर्णन किया गया है।
अन्य कवि के बारे में:
No.-1.जगत्राथदास ‘रत्नाकर’ उर्दू में ‘जकी’ उपनाम से कविता करते थे। रत्नाकर ब्रज भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनका ग्रंथ ‘उद्धव सतक’ भ्रमरगीत परम्परा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है।
No.-2. सत्यनारायण ‘कविरत्न’ का ‘भ्रमरदूत’ भी रत्नाकर के ‘उद्धव सतक’ की तरह भ्रमरगीत परम्परा का काव्य है।
No.-3. No.-3. रामचरित उपाध्याय द्विवेदी युग के प्रमुख सूक्तिकार थे।