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चावल के अलावा गेंहूँ भारत की मुख्य खाद्यान्न फसल है। भारत इसके अग्रणी उत्पादकों में से एक है। इससे बनीं रोटियाँ (चपाती) मुख्य खाद्यान्न पदार्थ है। बुवाई के समय नर्म जलवायु और कटाई के समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।
Bharat ki fasle in Hindi part 1
No.-1. भारत की प्रमुख फसलें, प्रकार, उत्पादकता, प्रमुख उत्पादक राज्य
No.-2. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 54.6 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर प्रत्यक्ष तोर पर निर्भर है।
No.-3. भारत में कृषि एवं सम्बन्धित क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 53.1% था जो 2014-15 में सकल घरेलू उत्पादन का 17.5% रहा
No.-4. भारतीय कृषि की मानसून पर निर्भरता के कारण भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था को मानसून का जुआ कहते हैं।
No.-5. भारत के कुल निर्यात में कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान रहता है।
No.-6. देश के कुल निर्यात मूल्य का 12.7 प्रतिशत के लगभग कृषि उत्पादों से प्राप्त होता है।
No.-7. उत्कृष्ट भौगोलिक स्थिति, समतल भूमि, उपजाऊ मृदा, पर्याप्त जलापूर्ति, मानसूनी जलवायु जैसे कारकों ने भारत को कृषि के क्षेत्र में विशिष्ट देश बना दिया है।
No.-8. भारत का क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी. है उसके 40.5 प्रतिशत भाग पर कृषि कार्य होता है।
No.-9. इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत में कृषि पद्धतियों एवं फसलों में भी विविधता दिखाई देती है।
भारतीय कृषि का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
No.-1. सर्वाधिक रोजगार का साधन
No.-2. उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति
No.-3. राष्ट्रीय आय का साधन
No.-4. विदेशी मुद्रा की प्राप्ति
No.-5. पोष्टिक पदार्थों का उत्पादन
No.-6. यातायात संसाधनों का विकास
भारतीय कृषि की विशेषताएँ :
No.-1. जनसंख्या की निर्भरता
No.-2. मानसून पर निर्भरता
No.-3. सिंचाई की सुविधाओं का अभाव
No.-4. प्रति हेक्टयर कम उत्पादन
No.-5. चारा फसलों की कमी
No.-6. कृषि जोतों का छोटा आकार
No.-7. खाद्यान्नों की प्रधानता
No.-8. फसलों की विविधता
Bharat ki fasle in Hindi
भारतीय कृषि की मुख्य समस्याएँ
No.-1. भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता हुआ भार
No.-2. भूमि का असन्तुलित वितरण
No.-3. कृषि की न्यून उत्पादकता
No.-4. मौसम की मार, कभी अति वृष्टि, अनावृष्टि
No.-5. किसान का भाग्यवादी दृष्टिकोण
No.-6. कृषि व्यवसाय के रूप में न लेकर जीवन यापन के रूप में है।
No.-7. सिंचाई के साधनों का सीमित विकास।
No.-8. कृषि का अशिक्षित एवं परम्परावादी होना।
No.-9. उचित विक्रय व्यवस्था का लाभ न मिलना।
No.-10. विभिन्न योजनाओं का सामान्य किसान को लाभ नहीं पहुँचना आदि।
कृषि के प्रकार
No.-1. भारत की प्राकृतिक दशा, जलवायु, मिट्टी में पर्याप्त भिन्नता के कारण देश के विभिन्न भागों में कई प्रकार की कृषि की जाती है।
No.-2. भारत में मुख्यतः निम्न प्रकार की कृषि प्रचलित है।
No.-3. निर्वहन कृषि
No.-4. भारत में जीवन निर्वहन कृषि एक परम्परागत कृषि विधि रही है।
No.-5. स्वतंत्रता पूर्व से यह जीवन निर्वहन करने वाली एक गहन कृषि के रूप में प्रचलित थी।
No.-6. उस समय किसान की जोत का आकार छोटा था और बैलों की सहायता से हल चलाकर खेती करता था।
No.-7. इन खेतों पर परिवार के सदस्य ही श्रमिक के रूप में कार्य करते थे।
No.-8. खेती करने का तरीका पुराना ही था।
No.-9. रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं किया जाता था।
No.-10. कृषि का मुख्य उद्देश्य परिवार की खाद्यान्न आवश्यकता की पूर्ति करना ही रहता था।
No.-11. आदिम निर्वहन कृषि
Bharat ki fasle
आदिम निर्वहन कृषि को दो प्रकार में विभक्त किया जाता है –
स्थानान्तरित कृषि
No.-1. स्थानान्तरित कृषि आज भी भारत वर्ष के कई क्षेत्रों में वनवासियों द्वारा आदिम कालीन ढंग से निर्वाह कृषि के रूप में की जाती है।
No.-2. ये कृषक केवल उतनी ही भूमि पर खेती करते है, जितने से उसके परिवार के जीवित रहने के लिए आवश्यक भोज्य मिल जाता है।
No.-3. इसके अतिरिक्त वनों को जलाकर भूमि को साफ करके दो से तीन वर्षों तक फसलें उगाई जाती है और भूमि की उर्वरता नष्ट होने पर उसे परती छोड़ दिया जाता है। अन्यत्र जाकर पुनः इसी प्रक्रिया को अपनाया जाता है।
स्थाई कृषि
No.-1. आदिवासी क्षेत्र जहाँ कृषि भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ जाता है वहाँ स्थानान्तरित कृषि का स्थान स्थाई कृषि लेने लगती है।
No.-2. इस प्रकार की कृषि स्थानान्तरित से उन्नत होती है और आवश्यकता से कुछ अधिक अन्न उत्पादन हो जाता है।
No.-3. भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के लिए पशु खाद का उपयोग किया जाता है।
No.-4. कृषि के साथ पशुपालन भी किया जाता है।
गहन निर्वहन कृषि
No.-1. भारत के विशाल मैदान तथा तटीय मैदानों में यह कृषि की जाती है।
No.-2. पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल व कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ प्रमुख फसलों के रूप में बोई जाती है।
No.-3. इस प्रकार की कृषि में मानव श्रम का प्रयोग अधिक होता था, अब मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है।
No.-4. गहन निर्वहन कृषि में फसल आर्वतन भी किया जाता है।
No.-5. चावल प्रधान गहन निर्वहन कृषि : यह कृषि 100 सेमी. से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होती है।
No.-6. यहाँ उर्वरक जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
No.-7. मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश एवं तटीय मैदान है।
No.-8. इन सभी क्षेत्रों में चावल मुख्य फसल है जिसकी वर्ष में 2 या 3 बार फसल उत्पादित की जाती है।
No.-9. गेहूँ प्रधान गहन निर्वहन कृषि : यह कृषि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी भागों में प्रचलित है।
No.-10. इन क्षेत्रों में वर्षा की कमी के कारण चावल के स्थान पर गेहूँ की खेती की जाती है।
No.-11. कपास, ज्वार, बाजरा, दालें आदि फसलें भी उगाई जाती है।
Bharat ki fasle Hindi part 1
व्यापारिक कृषि
No.-1. व्यापारिक कृषि के अन्तर्गत निर्यात की दृष्टि से अतिरिक्त उत्पादन किया जाता है।
No.-12. परिवहन, यातायात व संचार के साधनों के विकास के साथ-साथ निर्भरता बढ़ी है।
No.-13. इस प्रकार की कृषि में कई फसलों के स्थान पर भौगोलिक परिस्थितियों के अनुकूल एक ही फसल का उत्पादन, बढ़ाकर निर्यात से आय में वृद्धि करने का प्रयास किया जाता है।
No.-14. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल आदि राज्यों में इस प्रकार की कृषि का प्रचलन बढ़ रहा है।
आर्द्र कृषि
No.-1. आर्द्र कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ फसलों के लिए आवश्यक मात्रा में अथवा उससे अधिक वर्षा होती है।
No.-2. सामान्यतः इन क्षेत्रों में वर्षा का औसत 100 से 200 सेमी तक रहता है।
No.-3. गंगा की मध्यवर्ती घाटी, प्रायद्वीप भारत के उत्तर पूर्वी भागों एवं तटीय आर्द्र क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि की जाती है।
No.-4. इन क्षेत्रों में वर्ष में दो तथा कहीं-कहीं तीन फसलें तक प्राप्त की जा सकती है।
No.-5. उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग से अरूणाचल प्रदेश तक आर्द्र कृषि की जाती है।
शुष्क कृषि
No.-1. शुष्क कृषि भारत के उन क्षेत्रों में की जाती है, जहाँ वार्षिक वर्षा 50 सेमी से कम होती है साथ ही सिंचाई की सुविधाओं का भी अभाव है।
No.-2. कृषि की इस पद्धति में उपलब्ध जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाता है, फुव्वारों द्वारा सिंचाई स्प्रिंकलर सिस्टम, बूंद-बूंद सिंचाई जैसी सिंचाई पद्धति का उपयोग किया जाता है।
No.-3. इस कृषि में उन्हीं फसलों को बोया जाता है, जो शुष्कता सहन कर सकती है।
No.-4. गूहँ, जौ, ज्वार, बाजरा, चना, कपास आदि शुष्क कृषि की फसलें है।
No.-5. भारत में इस प्रकार की कृषि पश्चिमी उत्तर प्रदेश अरावली के पश्चिम में प. राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।
No.-6. भारत में शुष्क कृषि अनुसंधान कार्यालय राँची में स्थापित किया गया है।
No.-7. यह भारत के शुष्क क्षेत्रों की जलवायु, प्राकृतिक दशा तथा बीजों का उचित चयन करके शुष्क क्षेत्रों हेतु कृषि की योजना बनाता है।
गहन कृषि
इसके अन्तर्गत कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन का उद्देश्य रहता है जिसका प्रमुख कारण सघन आबादी एवं कृषि भूमि की कमी होना
Bharat ki fale in Hindi part 1
इस कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित है
(1) गहन कृषि क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में भूमि कम होती है।
(2) प्रति हेक्टेयर भूमि में खेतिहर श्रमिकों की संख्या अधिक होती है।
(3) वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जाती है।
(4) इसमें फसल चक्रण को अपनाया जाता है।
(5) भूमि पर जनसंख्या का भार अधिक होने से सीमित भूमि से अधिक पैदावार की जाती है।
(6) गहन कृषि में पूँजी निवेश व यांत्रिक उपयोग की अपेक्षा मानवीय श्रम की प्रधानता होती है।
(7) उत्तर भारत के अधिकाँश भागों में गहन कृषि ही की जाती है।
विस्तीर्ण कृषि
No.-1. इसीलिए खेतों का आकार बड़ा होता है जहाँ कृषि कार्य करने के लिए बड़ी मशीनों एवं यांत्रिक उपकरणों की आवश्यकता होती है।
No.-2. अतः कृषि के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है, उपरोक्त विशेषताओं वाली कृषि को विस्तीर्ण कृषि कहते हैं।
No.-3. भारत में जनसंख्या की अपेक्षा भूमि कम है तथा पारिवारिक बँटवारे में भूमि का निरन्तर विभाजन एवं उपविभाजन होते रहने से खेतों का आकार छोटा होता गया और गहन खेती की जाती है।
No.-4. इन छोटे व बिखरे खेतों में लागत अधिक एवं उत्पादन कम होता है, इससे निपटने के लिए चकबन्दी योजना आरम्भ की गई जिसके अन्तर्गत साढ़े चार से पांच करोड़ हेक्टयर भूमि पर चकबन्दी की जा चुकी है।
No.-5. पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में यह कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है।
No.-6. इन राज्यों के अधिकाँश भागों में यांत्रिक आधार पर विस्तीर्ण कृषि की जा रही है व अन्य राज्यों में भी कार्य प्रगति पर है जैसे राजस्थान का राजस्थान नहर का सिंचित क्षेत्र विस्तीर्ण कृषि के नवीन क्षेत्रों में हैं।