Bharat ke Parvat Geography Notes in Hindi

Bharat ke Parvat Geography Notes in Hindi

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इसकी लम्बाई 2500 किलोमीटर है तथा इसकी औसत ऊँचाई 0100 मीटर है। यह हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। हिमालय के सभी सर्वोच्च शिखर इसी श्रेणी में हैं, जैसे—एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकाल, ध्वलागिरि, नंगा पर्वत, अन्नपूर्णा आदि। इनमें कंचनजंगा, नंगा पर्वत,नंदा देवी भारत की सीमा में हैं और शेष नेपाल में।

Bharat ke Parvat Geography Notes in Hindi

No.-1. भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है।

No.-2. हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा।

No.-3. कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं।

No.-4. हिमालय की पर्वत श्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं। सदियों से हिमालय की कन्दराओं (गुफाओं) में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं।

No.-5. हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है।

No.-6. उत्तराखंड को श्रेय जाता है इस “हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः” का हृदय कहाने का।

No.-7. ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य- खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है।

No.-8.  ‘हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है ( अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य), उसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं ( भवन्ति यत्रौषधयो रजन्याय तैल पुरत सुरत प्रदीपः), वह पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग है।( भूमिर्दिवभि वारूढं)।

No.-9. हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है।

No.-10. यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।

No.-11. इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है।

No.-12. इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं।

हिमालय का निर्माण

No.-1. हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है।

No.-2. इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ,शाकम्भरी प्रमुख हैं।

No.-3. भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है।

No.-4. जहाँ आज हिमालय है वहां कभी टेथिस नाम का सागर लहराता था।

No.-5. यह एक लम्बा और उथला सागर था।

No.-6. यह दो विशाल भू – खन्डो से घिरा हुआ था।

No.-7. इसके उत्तर में अंगारालैन्ड और दक्षिण में गोन्ड्वानालैन्ड नाम के दो भू – खन्ड थे ।

No.-8. लाखों वर्षों इन दोनों भू – खन्डो का अपरदन होता रहा और अपरदित पदार्थ (मिट्टी, कन्कड, बजरी, गाद आदि) टेथिस सागर में जमा होने लगे ।

Bharat ke Parvat Geography Notes

हिमालय की उत्पत्ति

No.-1. हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कोबर के भूसन्नति सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा की जाती है।

No.-2. पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था और अफ्रीका से सटा हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा।

No.-3. ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की।

No.-4. यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुदी-समुद्री टकराव अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।

No.-5. तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है।

No.-6. साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम चुका है।

No.-7. इस टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।

No.-8. हिमालय पर्वत तन्त्र को तीन मुख्य श्रेणियों के रूप में विभाजित किया जाता है जो पाकिस्तान में सिन्धु नदी के मोड़ से लेकर अरुणाचल के ब्रह्मपुत्र के मोड़ तक एक दूसरे के समानांतर पायी जाती हैं।

No.-9. चौथी गौड़ श्रेणी असतत है और पूरी लम्बाई तक नहीं पायी जाती है।

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   ये चार श्रेणियाँ हैं-

(a)  परा-हिमालय,

(b) महान हिमालय

(c) मध्य हिमालय

(d) शिवालिक।

परा हिमालय

No.-1. इसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, यह हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है।

No.-2. यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है।

No.-3. इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है।

No.-4. इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है।

No.-5. यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।

महान हिमालय

No.-1. इसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके क्रोड में आग्नेय शैलें पायी जाती है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं।

No.-2. पार्श्वों और शिखरों पर अवसादी शैलों का विस्तार है।

No.-3. कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है।

No.-4. हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं।

No.-5. यह श्रेणी मुख्य केन्द्रीय क्षेप द्वारा मध्य हिमालय से अलग है।

No.-6. हालांकि पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे से सटी हुई हैं।

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मध्य हिमालय

No.-1. यह हिमालय के दक्षिण में स्थित है।

No.-2. महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है – पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी।

No.-3. जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार,उत्तराखंड में मस्सोरी या नागटिब्बा तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है।

शिवालिक श्रेणी

No.-1. शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं।

No.-2. यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी है।

No.-3. पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है।

No.-4. अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं।

No.-5. शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियाँ पायी जाती हैं।

अरावली पर्वत श्रृंखला

No.-1. इसकी सीमा गुजरात से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा होकर दिल्ली तक जाती है ।

No.-2. भारत की नहीं पूरे विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है ।

No.-3. अरावली पर्वत श्रृंखला की लम्बाई 692 कि0मी0 है ।

No.-4. अरावली पर्वत श्रृंखला की औसत ऊँचाई 920 मी0 है ।

No.-5. चौड़ाई गुजरात की तरफ अधिक एवं दिल्ली की तरफ घटती है ।

No.-6. इसका उच्चतम शिखर गुरूशिखर जिसकी ऊँचाई 1722 मी0 है, राजस्थान के सिरोही जिले में माउंट आबू के पास स्थित है ।

No.-7. उदयपुर में अरावली पहाड़ियों को जग्गा पहाड़ियों के नाम से जानी जाती है ।

No.-8. अलवर के पास इन्हे हर्षनाथ की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है ।

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No.-9. दिल्ली में दिल्ली पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है ।

No.-10. दिल्ली में राष्ट्रपति भवन रायशेला पहाड़ियों पर है । यह पहाड़ीयां भी अरावली पहाड़ियों का ही अंग है ।

No.-11. कई प्रकार के खनिज पाये जाते है । जैसे शीशा, तांबा एवं जस्ता ।

No.-12. इस पर्वत श्रृंखला की अन्य महत्वपूर्ण चोटियां है ।

No.-13. सेर – 1597 मी0, माउंट आबू के पास सिरोही जिले में ।

No.-14. रघुनाथ गढ़ – 1055 मी0, सीकर राजस्थान में ।

No.-15. अचलगढ़ – 1380 मी0, सिरोही जिले में ।

No.-16. दिलवाड़ा – 1442 मी0, सिरोही जिले में, यहीं पर एक जैन मंदिर भी है ।

विंध्याचल पहाड़ियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है –

No.-1. मालवा के पठार के दक्षिण में ।

No.-2. सोन नदी के उत्तर में ।

No.-3. गुजरात तथा राजस्थान की सीमा के पूर्व में ।

No.-4. गुजरात से शुरु होकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तथा बिहार तक जाती है । इसी पर्वत श्रृंखला को तीन भागों में बाँटा जा सकता है ।

No.-5. भारनेर की पहाड़ियां- मध्य प्रदेश में ।

No.-6. केमूर- उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्य प्रदेश में ।

No.-7. पारसनाथ- झारखण्ड में ।

No.-8. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की कुल लम्बाई 1050 कि0मी0(कैमूर पहाड़ियों को मिलाकर) है ।

No.-10. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की औसत ऊँचाई 300-600 मी0 है ।

No.-11. विंध्यांचल पर्वत श्रृंखला का सबसे उच्चतम बिन्दु सदभावना शिखर है । मध्य प्रदेश में भारनेर पहाड़ियों का हिस्सा है ।

सतपुड़ा पहाड़ियां

No.-1. सतपुड़ा पहाड़ियों के उत्तर में नरमदा नदी बहती है, तथा दक्षिण में तापती नदी बहती है । दोनों ही भ्रंश घाटियों में बहती है ।

No.-2. सतपुड़ा की पहाड़ियों को तीन भागों में बाँटा जाता है ।

No.-3. राज पीपला पहाड़ियां ।

No.-4. महादेव की पहाड़ियां ।

No.-5. सतपुड़ा की पहाड़ियों का सबसे उच्चतम बिंदू धूपगढ़ इसी का हिस्सा है ।

No.-6. धूपगढ़ की चोटी पंचमड़ी नगर के पास स्थित है ।

No.-7. तापती नदी का स्रोत भी महादेव की पहाड़ियां ही हैं ।

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मैकाल की पहाड़ियां।

No.-1. अमरकंटक जहां से नर्मदा एवं सोन नाम की दो नदियां निकलती है, इसी मैकाल की पहाड़ियों की हिस्सा है ।

No.-2. अमरकंटक ही मैकाल की पहाड़ियों का उच्चतम बिंदू भी है इसकी ऊंचाई 1036 मीo है ।

पूर्वोत्तर की पहाडियां

No.-1. ये पहाड़ियां हिमालय पर्वत का ही हिस्सा है ।

No.-2. ये पहाड़ियां मुख्यतः पांच राज्यों में बटी हुयीं हैं – मेघालय, असम, नागालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम ।

No.-3. मेघालय में है – गारो, खासी और जयन्ती ।

No.-4. जयन्ती पहाड़ियों का कुछ भाग असम में भी आता है ।

No.-5. पटकायी बूम- असम, नागालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम में फैली हुयी है ।

No.-6. पटकायी बूम पर्वत श्रेणियों को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है ।

No.-7. नागालैण्ड में नागा पहाड़ियां ।

No.-8. मिजोरम में लुशाई पहाड़ियां ।

No.-9. हिमालय पहाड़ियों के म्यांमार में पड़ने वाले हिस्से को अराकान योमा कहा जाता है ।

 

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