Apbhransh ke kavi aur rachnaye

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अतएव स्वयंभू का रचनाकाल इन्ही दो सीमाओं के भीतर सिद्ध होता है। अभी तक इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हुई हैं – पउमचरिउ (पद्मचरित), रिट्ठणेमिचरिउ (अरिष्ट नेमिचरित या हरिवंश पुराण) और स्वयंभू छंदस्। इनमें की प्रथम दो रचनाएँ काव्यात्मक तथा तीसरी प्राकृत-अपभ्रंश छंदशास्त्रविषयक है।

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आदिकाल में साहित्य रचना की प्रमुख धाराएँ-

  1. संस्कृत साहित्य, 2. प्राकृत, 3. अपभ्रंश, 4. देशभाषा या हिंदी साहित्य

आदिकालीन साहित्य का वर्गीकरण-

  1. सिद्ध साहित्य, 2. नाथ साहित्य, 3. जैन या रास साहित्य,  4. चारण या रासो साहित्य,  5. लौकिक साहित्य,  6. गद्य साहित्य

अपभ्रंश साहित्य और उसके रचनाकार-

No.-1. रचनाकार             समय     रचना एवं विषय

No.-2. जोइन्दु 6वीं शती                1.     परमात्म प्रकाश- धर्म दर्शन2.     योगसार

No.-3. स्वयंभू  8वीं शती                1.   पउम चरिउ- राम कथा2.   रिट्ठणेमि (अरिष्टनेमि) चरिउ-  कृष्ण काव्य3.   नागकुमार चरिउ4.   पंचमी चरिउ

No.-4. पुष्पदंत 10वीं शती              1.   महापुराण- तीर्थंकरों एवं राम-कृष्ण का चरित (64 महापुरुषों की कथा)2.   णयकुमार चिरउ3.   जसहर-चिरउ4.   आदि पुराण5.   उत्तर पुराण

No.-5. धनपाल                10वीं शती              भवियत्त कहा- वणिक पुत्र भविष्यदत्त की कथा

No.-6. रामसिंह                11वीं शती              पाहुड़ दोहा- दार्शनिकता, छंद शास्त्र

No.-7. कुशलाभ               11वीं शती              ढोला-मारू रा दूहा- विरह काव्य

No.-8. जिनदत्त सूरी     12वीं शती              उपदेश रसायन रास- नृत्य, गीत, रास काव्य

No.-9. अब्दुर्रहमान         12-13वीं शती       संदेश रासक- विरह काव्य

अपभ्रंश साहित्य की रचनाएँ

आदिकालीन अपभ्रंश साहित्य संबंधी प्रमुख तथ्य-

No.-1. हिंदी साहित्य का आरंभ 8वीं सदी से मानने वाले प्रमुख विद्वान- ग्रियर्सन, मिश्रबंधु, राहुल सांकृत्यायन, गुलेरी, रामकुमार वर्मा

No.-2. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार आदिकाल में अपभ्रंश की चार साहित्यिक पुस्तकें- विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता और कीर्तिपताका

No.-3. आचार्य शुक्ल ने पुरानी हिंदी को ‘प्राकृताभास हिंदी’ या ‘अपभ्रंश’ कहा है । शुक्ल जी प्रकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव माना है ।

No.-4. रामचन्द्र शुक्ल- “उस समय जैसे ‘गाथा’ कहने से प्राकृत का बोध होता था, वैसे ही ‘दोहा’ या दूहा कहने से अपभ्रंश या प्रचलित काव्य भाषा का पद्य समझा जाता था ।”

No.-5. रामचन्द्र शुक्ल जी अपने इतिहास में अपभ्रंश साहित्य को हिंदी साहित्य से अलग कर उसे पूर्व पीठिका के रूप में प्रस्तुत किया है ।

No.-6. चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने सर्वप्रथम ‘उत्तर अपभ्रंश’ को ‘पुरानी हिंदी’ कहा ।

No.-7. अपभ्रंश’ को ‘पुरानी हिंदी’ मानने वाले प्रमुख विद्वान- गुलेरी, राहुल सांकृत्यायन, रामचन्द्र शुक्ल

No.-8. भोलाशंकर व्यास ने हिंदी के आरम्भिक रूप को ‘अवहट्ठ’ कहा ।

No.-9. धीरेन्द्र वर्मा ने आदिकाल को अपभ्रंश काल कहा है ।

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इसे भी पढ़ें-

(A) आदिकालीन नाथसाहित्य के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

(B) आदिकालीन जैनसाहित्य के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

(C) आदिकालीन रासोसाहित्य के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

(D) आदिकालीन सिद्धसाहित्य के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

(E) हजारी प्रसाद द्विवेदी- ‘दसवीं से चौदहवीं शताब्दी काल, जिसे हिंदी का आदिकाल कहते हैं, भाषा की दृष्टि से अपभ्रंश का ही बढ़ाव है ।’

No.-11. हजारी प्रसाद द्विवेदी- आदिकाल अत्यधिक विरोधी और व्याघातों का युग है ।

No.-12. हजारी प्रसाद द्विवेदी ‘गाथा’ को ‘प्रकृति’ का तथा ‘दोहे’ को ‘अपभ्रंश’ का मुख्य छंद मानते हैं ।

No.-13. आदिकालीन हिन्द साहित्य में सबसे लोप्रिय छंद दोहा है ।

No.-14.  अपभ्रंश भाषा के प्रमुख छंद- पद्वड़िया, पज्झटिका, अरिल्ल और उससे बने कड़वक आदि ।[  रासो भाषा के प्रमुख छंद- छप्पय, तोटक, तोमर, पद्वरि, नाराच आदि ]

No.-15. पद्वड़िया मात्रिक छंद में 16 मात्राएँ होती हैं ।

No.-16. अपभ्रंश को हिंदी नहीं मानने वाले विद्वान हैं- हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा

No.-17. रामविलास शर्मा- चूँकि व्याकरणिक दृष्टी से अपभ्रंश हिंदी से भिन्न है इसलिए अपभ्रंश को हिंदी साहित्य के इतिहास में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए ।

No.-18. उत्तर अपभ्रंश की रचनाओं को अपने इतिहास में विवेचन एवं उसे हिंदी साहित्य के अंतर्गत् रखने वाले विद्वान- राहुल सांकृत्यायन, रामकुमार वर्मा, श्यामसुंदर दास, हजारी प्रसाद द्विवेदी

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No.-19. उत्तर अपभ्रंश क्या है?- आरंभिक हिंदी

No.-20. आदिकाल का अधिकतम साहित्य राजस्थान से प्राप्त हुआ ।

No.-21. अपभ्रंश के ‘फागुकाव्य’ से आशय ‘बसंत ऋतु का काव्य’ है ।

No.-22. बौद्धों द्वारा रचित अपभ्रंस-साहित्य ‘सिद्ध साहित्य’ कहलाता है ।

No.-23. स्वयंभू ने ‘पउम चरिउ’ की रचना ‘दोहा-चौपाई’ (कडवक-बद्व) शैली में की है ।

No.-24. स्वयंभू के अपूर्ण ग्रंथ ‘पउम चरिउ’ को उनके ही पुत्र ‘त्रिभुवन’ ने पूर्ण किया ।

No.-25. स्वयंभू को ‘अपभ्रंश का बाल्मीकि’ कहा जाता है ।

No.-26. पुष्पदंत को ‘अपभ्रंश का भवभूति’ कहा जाता है ।

No.-27.  स्वयंभू अपभ्रंश के जैन कवियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं इनके उपरांत अपभ्रंश के दूसरे उल्लेखनीय कवि ‘पुष्पदंत’ हैं ।

No.-28. पुष्पदंत ने अपने को ‘अभिमान मेरु’ कहा है ।

No.-29. अब्दुर्रहमान कृत ‘संदेश रासक’ किसी भारतीय भाषा में रचित इस्लाम धर्मावलंबी कवि की पहली रचना है ।

No.-30. अब्दुर्रहमान कृत ‘संदेश रासक’ एक खंडकाव्य है, जिसमें विक्रमपुर की एक वियोगिनी के विरह की कथा है ।

No.-31. अब्दुर्रहमान को हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी का प्रथम कवि मानते हैं ।

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